सर्दियों में, अगर स्किन की सही देखभाल नहीं की जाती, तो सर्द हवा आपकी त्वचा को काफी नुकसान पहुंचा सकती है. यह इसकी नमी और चमक को खत्म कर सकती है, जिससे यह सुस्त और डिहाइड्रेटेड हो सकती है. आयुर्वेद के अनुसार, पृथ्वी दक्षिणायन चरण में है, जो ब्रह्मांड का स्त्री चरण होता है, यह पुनर्जनन का मौसम है. यह ग्रहणशीलता का समय है, प्यासे पौधों और प्राणियों के जीवन से शक्ति जाने लगती हैं, जो त्वचा के लिए सबसे जरूरी है.
हमारे शरीर में त्वचा एक महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी अवस्था या मौसम में शरीर का सौंदर्य बनाए रखना ही हमारा प्रथम प्रयास होता है। जैसा की हम सभी जानतेहैं कि ऋतु परिवर्तन त्वचा संबंधी समस्याएं लेकर आता है, सारी ऋतुओ मे शीत ऋतु का आगमन त्वचा के लिए सबसे बड़ी परेशानी है। शीत ऋतु में रूखापन, झुर्रियां, त्वचा कि चमक मिट जाना, हाथ-पैर फटना, होठों का तड़कना तथा शरीर में खुश्की होना आदि इसके जैसी परेशानियां इस ऋतु की प्रमुख समस्याएं हैं। अगर आप चाहें, तो थोड़ी-सी सावधानी से आपकी त्वचा पूर्ण स्वच्छ, चिकनी, कोमल व दाग रहित बनी रह सकती है।
सर्दियों में हमारे शरीर की त्वचा के नीचे की तेल ग्रंथियां निष्क्रिय हो जाती हैं। इससे कारण उनसे बनने वाला प्राकृतिक तेल त्वचा की ऊपरी सतह तक नहीं पहुंच पाता है। और इस कारण शुष्कता हो जाती है और त्वचा का स्वरूप बिगड़ जाता है। अतः त्वचा को कृत्रिम रूप से नम बनाए रखना जरूरी है। त्वचा को नम बनाने के लिए सबसे पहले अपनी त्वचा की पहचान करना आवश्यक है।
त्वचा को पहचान ने का तरीका
त्वचा को पहचानने के लिए सुबह उठने के बाद अपनी त्वचा को टिश्यू पेपर से साफ करिए । अगर टिश्यू पेपर पर अधिक चिकनाई आती है, तो त्वचा तैलीय है। और अगर टिश्यू पेपर पर हल्की चिकनाई हो, तो इसका अर्थ है आपकी त्वचा सामान्य है। और अगर टिश्यू पर बिल्कुल चिकनाई न हो, तो समझिए आपकी त्वचा शुष्क है ।
आयुर्वेदिक योगों में प्रयुक्त सामग्री में मुख्य रूप से पौधे, जड़ी-बूटियां और प्राकृतिक खुशबू शामिल हैं. ये सूत्र या उपाय, हमारे पूर्वजों द्वारा विचारपूर्वक समय के साथ परीक्षण किए गए अवयवों के अद्भुत लाभ देते हैं.
सर्दी का मौसम साल का वह समय होता है जब हर किसी को अपनी स्किनकेयर पर पूरा ध्यान देना होता है, क्योंकि इस दौरान बॉडी ड्राई होती है और उसमें हाइड्रेशन की कमी होती है. सर्दियों में शरीर को ड्राईनेस से बचने के लिए व्यक्ति को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. यहां कुछ सर्दियों के स्किनकेयर टिप्स दिए गए हैं, जो आपकी त्वचा की देखभाल करने में आपकी मदद कर सकते हैं:
आयुर्वेद मजबूत वात के साथ सर्दी को कफ के मौसम के रूप में पहचानता है। यह ठंड के मौसम, भारीपन की भावना, बढ़ी हुई नमी (आमतौर पर बारिश या बर्फ के रूप में), बादल से ढके दिन, और जमीनी, धीमी भावना की विशेषता है जो कई जानवरों को हाइबरनेशन में भेजती है।
स्किन की देखभाल तो वैसे हर मौसम में और हमेशा ही करनी चाहिए, लेकिन सर्दियों में स्किन से संबंधित ज्यादा समस्याएं हो जाती हैं जिसके चलते सर्दियों में स्किन को एक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है।
लेकिन स्किन की देखभाल करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि स्किन कैसी है। स्किन 4 तरह की होती है - ऑयली, सूखी, मिक्स्ड और नॉर्मल। अलग तरह की स्किन की देखभाल के लिए अलग तरह के नुस्खों की जरूरत होती है।
सर्दियों में स्किन काफी रूखी और बेजान हो जाती है। इसके लिए जरूरी है कि विटामिन ई युक्त Mosturizer लगाया जाए। चेहरे को साफ पानी से धोएं और रोजाना रात को और दिन में 3-4 बार अच्छा mosturizer लगाएं।
सर्दियां आते ही लोग गरम पानी से नहाने लगते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गरम ना हो वरना उससे त्वचा रूखी हो जाती है।
स्किन को कोमल और हेल्दी रखना है तो नारियल तेल का इस्तेमाल करें। नारियल का तेल सिर्फ बालों के लिए ही उपयोगी नहीं है बल्कि इससे रोजाना नहाने से एक घंटे पहले शरीर और चेहरे की मालिश करें और फिर नहाएं। स्किन कभी रूखी नहीं होगी।
ग्लिसरीन, नींबू और 3-4 बूंद गुलाबजल मिलाकर एक मिश्रण बना लें और इसे एक शीशी में भरकर रख लें। रोजाना इस मिश्रण को रात को सोने से पहले चेहरे और शरीर पर लगाएं और सुबह उठकर हल्के गुनगुने पानी से नहा लें।
नाभि में कोकोनँट ,सरसव तेल का वि पुरन करना चाहिए ..
पथ्य आहार-विहार
शरीर संशोधन हेतु वमन व कुंजल आदि करें।
स्निग्ध, मधुर, गुरु, लवणयुक्त भोजन करें।
घी, तेल तथा उष्ण मोगर, गोंद, मैथी के लड्डू, च्यवनप्राश, नये चावल आदि का सेवन हितकारी है।
तैल मालिश, उबटन, गुनगुने पानी से नहाना, ऊनी कपड़ों का प्रयोग, सिर, कान, नाक, पैर के तलुओं पर तैल मालिश करें। गरम एवं गहरे रंग के वस्त्र धारण करें। आग तपना एवं धूप सेंकना हितकारी है।
हाथ-पैर धोने के लिए गुनगुने जल का प्रयोग करें। जूते-मौंजे, दस्ताने, टोपी, मफलर, स्कार्फ का प्रयोग करना चाहिए।
अपथ्य आहार-विहार
ठण्डे, वायु बढ़ाने वाली वस्तुओं का सेवन, नपातुला भोजन, बहुत पतला भोजन न करें।
दिन में नहीं सोना चाहिए, अधिक हवादार स्थान में रहना तथा ठण्डी हवा हानिकारक है। खुले पांव नहीं रहना चाहिए तथ हल्के सफेद रंग के वस्त्र न पहने।
इस ऋतू में कफ को कुपित करनेवाले पौष्टिक और गरिष्ठ पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम करते हुए गर्मी बढ़ते ही बंद करके सादा सुपाच्य आहार लेना शुरू कर देना चाहिए ! चरक के अनुसार इस ऋतु में भारी, चिकनाईवाले, खट्टे और मीठे पदार्थों का सेवन व दिन में सोना वर्जित है ! प्रातः वायुसेवन के लिए घूमते समय १५-२० नीम की नई कोंपलें चबा- चबाकर खायें ! इस प्रयोग से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शाक्ति पैदा होती है !
यदि वसंत ऋतू में आहार -विहार के उचित पालन पर पूरा ध्यान किया जाय और बदपरहेजी न की जाय तो वर्तमान काल में स्वास्थ्य की रक्षा होती है ! साथ ही ग्रीष्म व् वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य की रक्षा करने की सुविधा हो जाती है ! प्रतयेक ऋतु में स्वास्थय की दृष्टि से यदि आहार का महत्व है तो विहार भी उतना ही महत्वपूर्ण है !
इस ऋतू में उबटन लगाना, तेलमालिश, धुप का सेवन, हलके गर्म पानी से स्नान, योगासन व् हल्का व्यायाम करना चाहिए ! देर रात तक जागने और सुबह देर तक सोने से मल सूखता है, आँख व चहरे की काँती क्षीण होती है ! अतः इस ऋतू में देर रात तक जागना , सुबह देर तक सोना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है ! हरड़ के चूर्ण का नियमित सेवन करनेवाले इस ऋतु में थोड़े से शहद में यह चूर्ण मिलाकर चाटें !